Thursday, February 7, 2019

तस्वीरः क़ादिर के गांव की मस्जिद

क्योंकि इस शहर ईसाई सबसे बड़ी संख्या में रह रहे थे और ये अफ़वाह फैली कि इलाके में कुरान के पन्नों को अपवित्र किया गया है.
इसके बाद बस्तियों पर भीड़ ने हमला कर दिया और कई घरों में आग लगा दिया. आठ ईसाई ज़िंदा जला दिए गए.
बहुत गंभीर और धीमे आवाज़ में हमज़ा हमलों को याद करते हैं.
वे कहते हैं, "वो एक उदास दिन था. आरोपों में कोई सत्यता नहीं थी, लेकिन भीड़ आक्रोशित थी. अधिकारी जो कह रहे थे, उन पर उनका कोई ध्यान नहीं था और हालात नियंत्रण से बाहर हो गए थे."
पाकिस्तान के सेंटर फ़ॉर सोशल जस्टिस के मुताबिक़ जब से ईशनिंदा के मामलों में मौत की सज़ा का प्रावधान जुड़ा है तबसे ऐसे मामलों की संख्या काफ़ी बढ़ी है.
हमज़ा बताते हैं, "जिस तरह से इस क़ानून का ग़लत इस्तेमाल कमज़ोर लोगों के ख़िलाफ़ हुआ है, उससे मैं खिन्न महसूस करता हूं. धर्म एक तरह से मज़बूत राजनीतिक हथियार बन चुका है, अब ये वरदान नहीं हो कर अब श्राप बन चुका है."
इस क़ानून के आलोचकों का मानना है कि ज़मीनी स्तर पर पवित्र ग्रंथ की बातों को तोड़ मरोड़कर, ईशनिंदा का रोप लगाकर हिंसा होती है.
पाकिस्तान में हज़ारों बच्चे मदरसे या फिर इस्लामिक बोर्डिंग स्कूल (जहां मुफ्त में पढ़ाई होती है और ये सरकारी स्कूलों के विकल्प के तौर पर काम करते हैं) में पढ़ते हैं. कई मदरसों में इस्लामी कट्टरपंथ के बारे में पढ़ाया जाता है, जिसमें ईशनिंदा को लेकर लगातार बातें होती हैं.
इससे ईशनिंदा को लेकर इतना शर्म का भाव होता है कि कुछ लोगों के दिमाग में ये बात धंस जाती है कि वे खुद को नुक़सान पहुंचाने का भी सोचने लगते हैं.
16 साल के क़ादिर (असली नाम नहीं है) एक आम किशोर हैं. वे ओकरा ज़िले के एक छोटे से गांव में रहते हैं. अपनी उम्र के आम बच्चों की तरह वे आम तौर पर अपने पिता की खेती में मदद करते हैं.
पाकिस्तान के ग्रामीण इलाकों में साक्षरता दर बेहद कम होती है, ऐसे में किशोर उम्र के बच्चे और उनके परिवार वाले धार्मिक मामलों में स्थानीय इमाम की बात अंतिम सत्य मानते हैं.
जनवरी, 2016 में क़ादिर एक स्थानीय मस्जिद में नमाज के लिए गए. मौलवी ने लोगों को शांत करने के लिए एक सवाल पूछा, "आप में से कौन मोहम्मद को मानते हैं?"
क़ादिर को झपकी आ रही थी, बाक़ी लोगों ने अपने हाथ खड़े कर लिए.
मौलवी ने भीड़ से फिर कहा, "आप लोगों में से कौन मोहम्मद की बातों को नहीं मानते हैं?"
क़ादिर ने आधी नींद में अनजाने में अपना हाथ उठा दिया, इसके बाद मौलवी ने सार्वजनिक तौर पर ख़ूब डांटा फटकारा और मोहम्मद के अपमान का आरोप क़ादिर पर लगा दिया.
क़ादिर इससे काफी दुखी हुए. जब सब लोग अपने अपने घर चले गए तो क़ादिर मस्जिद के पीछे जाकर बैठ गए, वह खुद को तसल्ली देना चाहते थे.
वो गंभीरता से बताते हैं, "मैं मोहम्मद के प्रति अपने प्रेम को साबित करना चाहता था."
अपनी आस्था साबित करने के लिए क़ादिर को लगा कि उसे खुद अपना हाथ काट लेना चाहिए. इसके बाद उसने घास काटने वाली मशीन के सामने अपना दायां हाथ रख कर खुद से कलाई से हाथ काट लिया.
क़ादिर ने बताया, "दर्द का कोई सवाल ही नहीं था. मैंने अपने पैगंबर से मोहब्बत के लिए ऐसा किया था. मैं उन्हें ये सौंपना चाहता था."
उन्होंने कटे हुए हाथ को एक थाली में रखा, उसे सफेद कपड़े से ढका और मस्जिद पहुंचकर मौलवी से अपनी ग़लती के लिए मुक्ति की मांग की.
अगले कुछ दिनों में आस-पास के गांव और शहरों से लोग आकर क़ादिर को सम्मान देने लगे और पैगंबर के प्रति उसके प्रेम की प्रशंसा करने लगे.
दो साल बाद अब क़ादिर अपना ज़्यादातर समय स्थानीय मदरसे में कुरान पढ़ते हुए बिताते हैं. लेकिन वो कहते हैं कि उन्हें कोई अफ़सोस नहीं है.
वो कहते हैं, "मैं इस बात की परवाह नहीं करता कि लोग क्या कहते हैं. ये मेरे और पैगंबर के बीच की बात है. आप इसे नहीं समझ सकतीं."

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